श्री भगवान महावीर विकलांग सहायता समिति (महिला प्रकोष्ठ) ‘सम्बल’ जोधपुर

सम्बल में आपका स्वागत है - महिलाओं के जीवन को सरल, सशक्त और स्वाभीमानयुक्त बनाना

स्वरोजगार सक्सेस स्टोरी !!

  • (मोहनी) मैं मोहनी पत्नि स्व. श्री मोहन राम निवासी सालावास जो कि एक विधवा हूँ। मेरे पति की मृत्यु के बाद मेरे घर की आर्थिक स्थिति बेहत ही कमजोर हो गई थी। मेरे एक बड़ा बेटा भी था वह भी बेराजगार था तब मुझे श्री भगवान महावीर विकलांग सहायता समिति महिला प्रकोष्ठ सम्बल की तरफ से एक सिलाई मशीन मिली जिसकी बदौलत मैने अपनी आजीविका चलाना शुरू किया था। वर्तमान समय में इसी सिलाई मशीन के आधार पर ही मैने कमाई करके तीन बड़ी सिलाई मशीनें खरीदी है और मै अपना और अपने परिवार का अच्छे से भरण-पोषण कर रही हूँ और मेरे बेटे की बहू भी अच्छी सिलाई करना सीख गई आज हम सब परिवार वाले मिलके सिलाई के माध्यम से 15000 से 20000 रूपये कमा रहें है। इस नेक कार्य के लिए मैं आजीवन सम्बल संस्थान की ऋणाी रहूँगी।

  • (मोना सोलंकी) हम परिवार में छः बहिने है, भाई नहीं है, पापा काफी भाग दौड़ करते है, लेकिन इतने बड़े परिवार को चलान आज संभव नहीं है। मैं उच्च शिक्षा पाना चाहती थी लेकिन हमारे परिवार की आर्थिक स्थिति ऐसी नही थी मुझे लेपटाॅप खरीदकर दे सके। मैंने सम्बल से लेपटाॅप के लिये निवेदन किया जिससे मैं अपनी पढ़ाई भी पूरी कर सकूं और साथ मे मेरे पापा की मदद भी कर सकूं। अब मैं लेपटाप पर काम करके प्रति माह 10,000/- रू. कमा लेती हूं जिससे मैं अपने पापा की मदद करती हूं। मुझे बहुत अच्छा लगा मैं सम्बल की सदैव आभारी रहूँगी। मैं स्वयं अपनी कमाई से अपने शिक्षण का खर्चा भी निकाल लेती हूं तथा परिवार के लिये भी कुछ करने को सक्षम हो गई हूँ।

  • (रहमती) निवासी: ग्राम नन्दवान, तहसील लूणी, जोधपुर मेरे परिवार की स्थिति बहुत दयनीय थी। मेरे एक लड़का एवं 1 लड़की थी, पति के पास कोई कामकाज नहीं था, कभी काम पर जाता और कभी नहीं। एक दिन पुष्पा भूतड़ा से मैं मिली तो, उन्होंने सम्बल संस्था के माध्यम से किराणा के व्यवसाय को खोलने में सहायता की एवं 5000 रूपये की राशि से किराणे की छोटी दुकान आरम्भ की। मैंने कड़ी मेहनत करके मासिक आय को बढ़ाया एवं पैसे बचाकर बच्चों की पढ़ाई एवं पालन-पोषण अच्छी तरह करने लगी। इसका सारा श्रेय सम्बल संस्था को है, जिन्होंने आर्थिक सहायता देकर हमें जीवन में खुशहाली दी है।

    उपलब्धियां:
    1. प्रतिमाह 9000 से 10000 मासिक आय हो गई।
    2. अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा दे रही हूं।
    3. परिवार को रोजगार से जोड़ दिया है।
    इस संस्था के प्रति मैं बहुत आभारी हूं। इस संस्था ने मेरा जीवन खुशियों से भर दिया।

  • (पप्पु देवी) शादी होने के बाद हर महिला स्वप्न देखती है कि मैं घर एवं बच्चों की देखभाल करूंगी और मेरा पति मेरी आर्थिक सहायता करेगा। अच्छा धन्धा करके परिवार का पालन-पोषण करेगा लेकिन मेरे जीवन में ऐसा नहीं हुआ। पति कुछ भी नहीं कमाता था और मैं इसी कारण बहुत परेशान रहती थी। तभी एक दिन संस्था की कर्मचारी से मिली। उन्होंने संस्था के माध्यम से आटे की चक्की दिलवाई। मैं उस चक्की से अनाज पीस कर अपना गुजारा करने लगी और बच्चों को पढ़ाई भी करवाने लगी और हर माह 6000 से 8000 रूपये कमाने लगी। अपने रहने के लिए पक्का मकान भी बनवा लिया। जीवन में अच्छे लोगों के सम्पर्क में आना भी सौभाग्य की बात होती है। आज मैं गरिमामय पारिवारिक जीवन जी रही हूं। इसका श्रेय इस संस्था का है जिसने मेरे जीवन में आशा की लहर ला दी।

  • (साइस्ता) मेरा इस संस्था से 5 वर्ष पूर्व सम्पर्क हुआ था। मेरे पति को टी.बी. की बीमारी थी उनके इलाज के लिए उनको अहमदाबाद ले गई। जिसमें काफी खर्चा हो गया। अब तो परिवार को पालना एवं बच्चों की खाने-पीने की व्यवस्था करना बहुत मुश्किल हो रहा था। उस समय मेडम शमा परवीन के द्वारा संस्था की जानकारी मिली और मैने अपने निराश जीवन के बारे मे बताया तो उन्होंने परियोजना अधिकारी से बातकर संस्था से जूतों के कार्य के लिए ऋण दिलवाया। ऋण लेकर मैने जूते बनाना आरम्भ किया और बाजार मे बेचने लगी। मेरा व्यवसाय ईश्वर की कृपा से बहुत अच्छा चलने लगा और हर महीने 3000 से 5000 रूपये कमाने लगी। संस्था द्वारा एक और सहायता मिली जिला उद्योग केन्द्र की सहायता से हस्तशिल्प मेले में स्टाल भी उपलब्ध करवाया जिससे मेरे रोजगार में चार चाँद लग गये और अब प्रत्येक वर्ष स्टाल की सहायता से 10000 से 12000 रूपये कमाकर अपने परिवार की अच्छी देख-रेख कर रही हूं। सच पूछो तो संस्था ने मेरा एवं मेरे परिवार का जीवन ऋण देकर सुधार दिया। मैं बहुत-बहुत आभारी हूं।

  • (पारस कंवर) जाति: राजपूत, निवासी: ग्राम जेपाली, तहसील पीपाड़, जिला जोधपुर यह गांव जोधपुर से लगभग 70 किमी दूर हैं। मेरी जिन्दगी की कहानी बहुत ही अनोखी है। मेरा पीहर पक्ष गरीबी की हालत में था। ससुराल वालों ने गरीबी का फायदा उठाते हुए अपने बीमार बेटे की शादी मुझसे करा दी। मेरे जीवन पर पहाड़ टूटा जब मेरा बेटा 6 माह का था और मेरे पति की मृत्यु हो गई। मेरी उम्र 22 वर्ष की थी। पति की मृत्यु के बाद ससुराल वालों ने भी सहारा नहीं दिया और मुझे परेशान करने लगे और घर से निकाल दिया। तभी मैंने सम्बल संस्था से सम्पर्क किया और संस्था सचिव ने मेरे ससुर से बात कर कानूनी जानकारी देकर वापस घर में रहने की जगह दिलवाई और अपने रोजगार हेतु सिलाई मशीन भी दिलवा दी। उसी से आज मैं मासिक 4000 से 5000 रूपये कमा रही हूं। समय-समय पर संस्था मुझे सहायता एवं सहयोग कर रही है। जो अनुकरणीय है। इसके लिए सम्बल संस्था बधाई की पात्र है। इसी सम्बल संस्था के सहारे मेरे जीवन में उल्लेखनीय परिवर्तन आया।

    1. अपने मकान में अच्छा जीवन जी रही हूं।
    2. बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलवा कर शिक्षित कर रही हूं।
    3. वर्तमान में बच्चे, एक सातवीं में और एक चैथी कक्षा में पढ़ रहे हैं।

    मैं सम्बल संस्था के कारण ही बहुत खुशहाली का जीवन जी रही हूं।

  • (गीता) मेरा परिवार बड़ा था, चार बच्चे थे, पति की मजदूरी से परिवार का पालन पोषण नहीं हो पा रहा था, उनको मजदूरी में बहुत कम पैसे मिलते थे। मैंने सोचा मुझे भी कुछ करना चाहिए। लेकिन मंै अनपढ थी नौकरी मिलना सम्भव न था, लेकिन मुझे पूरी मन में आस थी कि मैं कुछ कर सकती हूं। मैंने सुशीला मैडम का नाम बहुत सुन रखा था और एक दिन मैं उनसे मिली और अपने मन की व्यथा बताई। मैं सब्जी की दुकान खोलना चाहती हूं मेरी मदद करो। संस्था के माध्यम से 2019 में सब्जी की दुकान हेतु 3000/- की राशि मिली और मैंने सब्जी की दुकान खोलकर परिश्रम करके 2000 से 3000 रू मासिक कमाने लगी। बच्चों का अच्छी तरह पालन पोषण करने लगी। आत्मनिर्भर बनने पर बहुत खुशी मिल रही थी। मैं सम्बल संस्थान की बहुत आभारी हूं जिन्होंने हमारी मदद कर जीवन में खुशियां भर दी।

  • (लक्ष्मी देवी) मेरे पति बहुत बीमार रहते थे, एक्सीडेन्ट से उनके शरीर की हालत बहुत खराब हो गई। उनके इलाज एवं दवाइयों में बहुत पैसे की आवश्यकता प्रतिदिन होती थी और इसी कारण परिवार को चलाना बहुत मुश्किल हो रहा था। उसके बाद मेरे पति और एक जवान बेटे की मृत्यु हो गई जिससे मैं बहुत परेशान रहने लगी, तभी मुझे किसी ने सम्बल संस्था के बारे में बताया और मैं महिला कर्मचारी से मिली और अपनी परेशानियां बताई। संस्था द्वारा 2009 में खींचियां, पापड़, बड़ियां के रोजगार हेतु 4000 रूपये दिलवाएं। धीरे-धीरे 2500 से 3000 रूपये कमाने लगी। उस समय मेरी उम्र 52 वर्ष की थी फिर भी हिम्मत करके दिन रात मेहनत की जिससे कमाई 5000 रूपये तक हो गई। धीरे-धीरे श्री गणेश स्वयं सहायता समूह का गठन किया और 11 महिलाओं को जोड़ा। 25 लाख का ऋण लिया और मशीनों द्वारा इस रोजगार को बढ़ाया। इस रोजगार से प्रत्येक महिला को 7000 से 8000 रूपये तक की आय बढ़ी। मेरे बेटे-बहू इसी रोजगार में जुड़ गए और आज रोजगार बहुत अच्छा चलने लगा। मेरे हाथों से बना सामान हस्तशिल्प मेले में भी जाने लगा और इससे लगभग 50 से अधिक महिलाओं को मेरे द्वारा रोजगार भी दिया गया। कौन कहता है महिलाओं में प्रबन्धन व संगठन की शक्ति नहीं होती। मैं, मेरा उदाहरण देती हूँ। आर्थिक मुक्ति महिला सशक्तिकरण का पहला चरण है। मैं संस्था को बहुत-बहुत धन्यवाद देती हूं।

  • (कस्तूरी देवी) मैं उत्तरप्रदेश में रहती थी। शादी के बाद पति जोधपुर ले आए। मेरी छोटी उम्र में शादी हो गई। यहां आकर पति को शराब पीने की बुरी आदत पड़ गई जिससे परिवार की आर्थिक दशा बहुत खराब हो गई। कुछ करना चाहती थी लेकिन बिना पैसे कुछ कार्य भी नहीं कर सकती थी। इधर-उधर भटकती रही। एक दिन मुझे सम्बल संस्था के बारे में बताया तो मेरे मन में कुछ आस जगी और मैं वहां जाकर संस्था की सचिव सुशीला जी से मिली और उन्हें अपनी आप-बीती सुनाई। संस्था के माध्यम से खींचिया पापड़ के कार्य हेतु मुझे कुछ राशि दी गई। कड़ी मेहनत कर मैंने इस व्यवसाय से अपने जीवन में खूब कार्य किया और मासिक 3000 से 5000 रूपये कमाने लगी तथा अपना एवं अपने परिवार का पालन-पोषण करने लगी। आज मेरा व्यवसाय अच्छा चल रहा है। जीवन में खुशहाली आई है। इस संस्था की आभारी हूं जिन्होंने मुझे जीवन में आर्थिक सहायता देकर व्यवसाय खुलवाया। सम्बल संस्था को बहुत-बहुत साधुवाद।

  • (चन्द्रा) मेरा जीवन परेशानियों से घिरा था क्योंकि पति शराब के नशे में मारपीट करता था और एक दिन घर से बाहर निकाल दिया। अब कोई सहारा न था। उदास एवं निराश होकर सोच रही थी कि कैसे जीवन को जिया जाए। बच्चों के कारण जिन्दा रहना भी जरूरी था। समझ नहीं आ रहा था कि बच्चों को लेकर कहां जाऊं। सम्बल संस्था की एक कर्मचारी मेरे गांव में ही रहती थी और उन्होंने मुझे इस संस्था से अवगत कराया और मेरी परेशानियों से भरे जीवन की कहानी संस्था सचिव को बताई। संस्था द्वारा मुझे सिलाई मशीन दी गई और उससे मैंने कार्य करना आरम्भ किया। इतना ही नहीं मुझे संस्था द्वारा एक स्कूल में चपरासी के पद पर भी कार्य करने के लिए लगवा दिया गया जिससे हर महीने के 4000 से 5000 रूपये कमाने लगी और बच्चों को शिक्षा के लिए स्कूल भी भेजने लगी। अब लगने लगा कि अच्छे दिन आ गए, अब मेरे पति में भी सुधार आ गया। मेरे साथ रहने लगे। संस्था ने मुझे सम्बल न दिया होता तो आज मैं इतनी सुखी कभी नहीं होती।

  • (टीपू देवी) यह बात 1991 की है जब मेरी आयु 25 वर्ष की थी तब मेरे पति का स्वर्गवास हो गया। मेरे जीवन में दुःखों का पहाड़ टूट गया। रहने को छत नहीं, परिवार में 3 लड़कियां और 2 लड़के थे। परिवार को दो समय का खाना भी नहीं दे पा रही थी। तभी एक दिन मुझे संस्था कर्मचारी मिलीं और उनको आपबीती सुनाई और उन्होंने मुझे सिलाई मशीन देने का कहा और पूछा गया क्या आप सिलाई करेंगी। मैंने सोच लिया कि मुझे मेहनत करनी हैं और 1991 में मुझे सम्बल संस्था द्वारा सिलाई मशीन दी गई। उस समय मासिक 500 से 600 रूपये कमाने शुरू किए। लेकिन धीरे-धीरे मैंने अपने बच्चों को भी सिलाई सीखा कर सिलाई का काम करवाना शुरू कर दिया। इस तरह हमारे परिवार में आय बढ़ी और परिवार का पालन-पोषण अच्छी तरह होने लगा। ये सारा खुशहाली का जीवन सम्बल संस्था द्वारा हो सका। आज हमारे परिवार में 20 से 25 हजार की आय है एवं सालावास में दो सिलाई की दुकानें हैं। हाथ में हुनर था और सम्बल संस्था की सहायता मिली तो आज जीवन यापन अच्छी तरह से हो रहा है।

  • (गैरा) मेरा इस संस्था से 8 वर्ष पूर्व सम्पर्क हुआ था उस समय मेरे परिवार की आर्थिक स्थिति कठिन थी। परिवार मे 2 लड़कियां एवं 2 लड़के थे उनका पालन पोषण करना बहुत कठिन हो रहा था। पति का कोई सहयोग न था और नशा भी करता था। मेरे बेटे को एडस की बीमारी हो गई थी और उसकी मौत हो गई। मैं बहुत परेशान थी। परियोजना अधिकारी ने संस्था के माध्यम से कपडे की दुकान हेतु ऋण दिलवाया। मैंने इस रोजगार से जुड़कर दिन-रात कड़ी मेहनत की और मासिक आय 4000 रूपये तक कमाने लगी। मेरी आर्थिक स्थिति में सुधार होने लगा और जीवन की इच्छाएं पूरी होने लगी। अपने परिवार के लोगों को भी इसी व्यवसाय में लगालिया। आज मैं अच्छा जीवन जी रही हूं। परेशानी के दिनों में मुझे इस संस्था का सहयोग मिला।

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